हे माँ! तू छोड़ अब कहाँ चली, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे माँ! तू छोड़ अब कहाँ चली,

हे माँ! तू छोड़ अब कहाँ चली,
हम तुझे खोजेंगे गली-गली।

आयी थी, तब खुशी थी कितनी,
हम सोच सके थे पहले न उतनी,
अचानक आनँद उमड़ आया
और आने की खुशी जब मिली ।

बँदनवार गये स्वयं विराज तब,
तोरण पताका सुभग भ्राजे सब,
सुषमा सब राजे हरित हरितवर,
नदी उमँग सागर लहर मिली।

हमने तुम सँग बहुत प्यार उमगाये,
हृदय उमँग उल्लास आनंद सरसाये,
मौज खुशी के पल बहुत पाये,
आनंद चमन रँग-बिरँगी गुल खिली।

आज विदाई का हृदय विदारक पल आया,
जिगर तल अपार करुणा भर आया,
करुणा पूरित हृदय भाव बरसाया,
"नवीन"आद्र^ जब नजर मिली।

Monday, October 29, 2018
Topic(s) of this poem: love
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