खेतवा में बरसे सोना-चानी Poem by Upendra Singh 'suman'

खेतवा में बरसे सोना-चानी

छम-छम ठुंमकेलीं वर्षा महारानी.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.

मंह-मंह-मंह मंहकेले सोंधी-सोंधी मटिया.
अब त किसनवन जागी किस्मतिया.
होई खूब जम के किसानी.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.


वन-बाग़ उपवन में कुहकी कोयलिया.
फुलवा के भार से झुकि जाई डरिया.
लहराई धरती चुनर धानी.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.



रंग लाई मोरे बलमा क सपनवा.
लहराई खेतवा में लहर-लहर धनवाँ.
सुखी होइहें पशु अउर परानी.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.


हँसत मुसकात कूदत अइहें मोरे सइयाँ.
गरवा में डालि लिहें गोरी-गोरी बहियाँ.
प्यार बलमा क कइसे हो बखानीं.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.



भरि जइहें पनिया से ताल अउर तलईया.
मनवाँ क मोर नाची बहँकी कलईया.
आ गईलीं बदरी सुहानी.
रिमझिम खेतवा में बरसे सोना-चानी.

Saturday, November 10, 2018
Topic(s) of this poem: rain
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 10 November 2018

Beshak barsat aur kisan ka ek ajeeb rishta hota hai aur aapne is kavita mein badi hi khubsurati se usko lika hai...

0 0 Reply
Upendra Singh Suman 29 December 2018

Thanks brother, thanks a lot for your valuable comment.

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