लाखों दीपक जला दिये तेरे सामने, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

लाखों दीपक जला दिये तेरे सामने,

लाखों दीपक जला दिये तेरे सामने,
तेरे चेहरे सामने सब न सके चमक ।
देख लिया घूम -घूम हमने पूरा जहां,
फीकी पड़ गई सब ल़ोगों की दमक ।।

आवाज़ सुरीली भली बनी मनमोहक,
सुहाती नहीं चिड़ियों की सुभग चहक।
गँध बदन की मलय समीर सम सुहानी,
कुछ न लगती अच्छी किसी की महक।।

अँग-अँग से निकलते कोटि रवि छबि,
जैसे सुँदरता रहती सदा ही बस छलक।
"नवीन"शोभा मधुमय मादक मदमाती,
भल लो अँकवार, बस दिल यह ललक।।

Tuesday, November 20, 2018
Topic(s) of this poem: love
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