शिकवा आपसे इतनी कि हम कह नहीं सकते,
मगर आपकी तारीफ इतनी, बयां कर न सकते।
लाख चाहता हूँ कि आपको कभी न याद करुँ,
दिल कहता बार-बार, फिर किससे फरियाद करुँ?
तुम ही तो वह जहां, जहाँ मेरी साँसें बसती हैं,
नहीं तो और किसी जगह की ठौर नहीं लेती है।
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