शिकवा आपसे इतनी कि Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

शिकवा आपसे इतनी कि

शिकवा आपसे इतनी कि हम कह नहीं सकते,
मगर आपकी तारीफ इतनी, बयां कर न सकते।

लाख चाहता हूँ कि आपको कभी न याद करुँ,
दिल कहता बार-बार, फिर किससे फरियाद करुँ?

तुम ही तो वह जहां, जहाँ मेरी साँसें बसती हैं,
नहीं तो और किसी जगह की ठौर नहीं लेती है।

Wednesday, November 21, 2018
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success