हमको न अपनी, न जमाने की फिक्र है, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हमको न अपनी, न जमाने की फिक्र है,

हमको न अपनी, न जमाने की फिक्र है,
भले ही हर जगह होती रहे जिक्र है,
तुम मेरे, हम तुम्हारे ही रह जायेंं,
बस इसी बात में रहते बेफिक्र हैं।

Thursday, November 22, 2018
Topic(s) of this poem: love
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