हम हो गए तुमसे इस तरह, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम हो गए तुमसे इस तरह,

हम हो गए तुमसे इस तरह,
जैसे शरीर औ छाया की तरह,
अब तेेरे बिना मन नहीं लगता,
जैसे सारा जहां फीका लगता है।
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हुस्न की मल्लिका तुम, तेरा इश्क सबकुछ मेरे लिए।
जिन्दा रहना चाहता बस तुझ पर मरने के लिए।।
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तुम हँसते रहो, यह तमन्ना है मेरी,
कभी गम में न घुसना, मिन्नत मेरी।
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तुम और हम में अब अँतर कहाँ रहा,
जब सब पर्दा हटा दिया, अँदर क्या रहा?
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तुम कैसे मिल गए, यह तो किस्मत की बात है,
वरना मुहब्बत से कहाँ होती मुलाकात है।
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मुहब्बत मजा है, सजा नहीं कभी,
दोनों के दिल की सच्ची रजा यही.
आओ आज हम दोनों के होंठ लिपट ले,
जिन्दगी का सही मजा यहीं सिमट लें।
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जुबां भले झूठी बात कह जाती है,
लेकिन दिल की धड़कन हकीकत बताती है।
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दिल की बात जुबां से क्या कहना,
रहते हो दिल में, सब खुद जान लेना।
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थाम लिया हाथ कभी छोड़ना मत,
मुहब्बत के नाजुक रिश्ते तोड़ना मत।
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एक बार हम दोनों यदि मिल जाये,
दिन औ रात भी मिलन देख शरमा जायें।
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तुम्हारे मुखड़े से रौशन होती चाँदनी,
हम जैसे तारे इसीलिए गौर करते हैं।
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रास्ता सब देखा जाना पहचाना है,
तुम्हारे चेहरे सामने चिराग कुछ नहीं।
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मुहब्बत रात का इँतजार नहीं करता,
उसे तो जुल्फ के अँधेरे में रहना अच्छा लगता है।
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तृण वारि ऊपर इतराता-उतराता रहता,
क्या कभी भी जल से श्रेष्ठ हो पाता?
जल की लहरें उसे अँक भर लेती हैं,
प्यार पुचकार से चुम्बन करती रहती हैं।
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Thursday, November 22, 2018
Topic(s) of this poem: love
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