शमा चाहती जलना मद्धिम प्रकाश में, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

शमा चाहती जलना मद्धिम प्रकाश में,

शमा चाहती जलना मद्धिम प्रकाश में,
करना चाहती आलोकित घर -द्वार-बाहर,
जरुरत स्नेह सँरक्षण की,
दीप जलता रहे,
जीवन भर,
आ जाता पवन,
न सुरभित समीर बन,
धूलों का झोंका ले,
आँधी-तूफान बन,
बुझा देता दीपक,
हो जाता अँधेरा,
अब उजाला तब,
जब हो जाये सबेरा
शमां क्या करे?
कोई जलने दे तब न!

Saturday, November 24, 2018
Topic(s) of this poem: love
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