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मेरी वीरानियों को गुलशन बनाया क्यों था
हमसफ़र नहीं था मेरा तो रास्ता दिखाया क्यों था
क्यों मुझे वो अकेला कर के गया है
साथ देना ना था तो साथ आया क्यों था।
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मुझे टूट कर जीने की आदत ना थी
अब सम्भलने की बात ना करना।
ये शमा ये अश्क़ ये आँखे ये समन्दर
इनके बिना मेरी कोई रात ना करना।
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कभी गुज़रे लम्हात का तज़किरा करने के बजाय
वो मुझसे मुस्तक़बिल का सवाल कर देते हैं।
बहोत मुश्किल से बिखर कर सम्भलता हूँ मैं
एक ही वार में वो मुझे निढाल कर देते हैं।
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उसको मेरी ग़ैरत का
अंदाज़ा नहीं
मैं दरिया में डूब कर मरा
फिर भी प्यासा रहा।
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