आओ निकल कर सामने किरदार दिखादो Poem by NADIR HASNAIN

आओ निकल कर सामने किरदार दिखादो

आओ निकल कर सामने किरदार दिखादो
भटके हुए राही को कोई राह दिखा दो

करनेलगेगा ख़ुद-बा-ख़ुद वोह आसमां कि सैर
इल्म-ओ-हुनर कि दौलत से परवाज़ सिखादो

हररोज़, ज़िन्दगीभर सहारे से है बेहतर
कुछ दिन ही हो मदद मगर ख़ुद्दार बनादो

काँटों भरे बबूल के जंगल तो हैं बहोत
दो-चार दरख़्त ही सही फलदार लगादो

क़ीमती होजाएगी बंजर ज़मीन भी
सींचो कोई मगर के यूं नमदार बनादो

जीना सिखारहा हैबेलौस ज़िन्दगी
ऐसा है कौन नादिर दीदार करादो

लेखक: नादिर हसनैन

Friday, February 1, 2019
Topic(s) of this poem: positiveness
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