रीत है न्यारी
शनिवार, ९ मार्च २०१९
मैं हो गया बेसहारा
नहीं मिलता कोई मुझे सहारा
में फिरता मारा मारा
जग नहीं हुआ, कभी मेरा।
ये जग की रीत है न्यारी
कभी नहीं हुई दिल से यारी
जब देखो तब, रूठते सारे
हम ढूंढे सदा, दिल के मारे।
में रह नहीं सकता, बिना प्यार के
अटूट बंधन और रिश्ते गेहरे
मैं नहीं पढ़ सकता दूसरे चेहरे
नहीं बनते अपने, ओर बेगाने हो जाते
सब सोचते अपना, स्वार्थ पहला
पहनाते सभी फूलों की माला
जब हो जाते काम उनके
सब चले जाते, रिश्ते तोड़ के।
फिर भी हमको रहना होगा
सब का साथ निभाना होगा
गैरो के बीचखुश रहना होगा
अपना बनाके सोचना होगा।
हम नहीं बन सकते बैगाने
गाते सुर में अपने गाने
ना जाने कितनई बेरुखी झेलनी होगी!
किस्मत ने लीखी, भुगतना होगा।
हसमुख मेहता
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