कभी सोचोगे तो ये एहसास होगा
वक़्त कितना ज़ाया हुआ
जिस जिस को अपना समझा था
हर वो शख़्स पराया हुआ।
इतने पर्दों में था चेहरा उनका
समझ न पाया समझ कर भी
वक़्त जैसे जैसे गुज़रता रहा
धीरे धीरे नुमायाँ हुआ।
किसी उम्मीद में थामा था दामन हमने
खुशियों से नाता जुड़ जाएगा
मगर यक़ीन नही था कि
सबब ख़ुशी का ग़म का साया हुआ।