कभी सोचोगे तो ये एहसास होगा Poem by Ahatisham Alam

कभी सोचोगे तो ये एहसास होगा

कभी सोचोगे तो ये एहसास होगा
वक़्त कितना ज़ाया हुआ
जिस जिस को अपना समझा था
हर वो शख़्स पराया हुआ।

इतने पर्दों में था चेहरा उनका
समझ न पाया समझ कर भी
वक़्त जैसे जैसे गुज़रता रहा
धीरे धीरे नुमायाँ हुआ।

किसी उम्मीद में थामा था दामन हमने
खुशियों से नाता जुड़ जाएगा
मगर यक़ीन नही था कि
सबब ख़ुशी का ग़म का साया हुआ।

Thursday, March 21, 2019
Topic(s) of this poem: love
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