राधिकाएँ तो बस साधना कर सकीं Poem by sanjay kirar

राधिकाएँ तो बस साधना कर सकीं

सभ्यतायें सहज-प्रेम न कर सकीं,
माँग सूने समय की न वह भर सकीं! !
रुक्मणी को सदा सुख मिले स्वर्ग के,
राधिकाएँ तो बस साधना कर सकीं ॥1॥

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