लूट Poem by Samar Sudha

लूट

जग में मची है लूट



सोच की लूट, इरादों की लूट

ना पूरा करने की, क्चचे वादों की लूट



आंखों से लूट, ज़ुबान से लूट

हो रही जग में ईमान से लूट



शब्दों से लूट, विचारों की लूट

बदलते ढंग, आचारों की लूट



कुदरत को भी ना बख्शा जग ने,

शिदात से लगा है, मां को ठगने।



छाती को नोच रहा है,

सच्चे इंसान की सोच कहा है?



वक़्त लेगा बदला, नहीं है झूठ

संभल जा, बस और मत लूट

-Samar Sudha

Saturday, July 13, 2019
Topic(s) of this poem: inhumanity
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