वेदना जला रही, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

वेदना जला रही,

आँखों से देखता रहता एकटक,
वेदना जला रही,
मन को रुला रही,
कसक, तड़प हृदय,
भावुक हृदय,
कोशिश बाँधने की मन को,
लेकिन
वह तो अपना रहा नहीं,
कोई छीन ले गया,
उसका दीदार भी न हो रहा,
पता नहीं,
कभी आयेगा भी!

Thursday, July 25, 2019
Topic(s) of this poem: love
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