हम दोनों बैठे लिखने,
आज एक किताब ।
बात हुई इतनी कि,
आज लिखना ख्वाब।।
दोनों दो कमरे जा बैठे,
कोई न बतायेगा बात।
हम भी हुए तैयार,
भले बीत जाये रात।।
दिन भर वे लिखते रहे,
रात से हुआ प्रभात ।
बात पूरी न हुई उनकी,
लिखते रहे अपनी सौगात।।
सुबह का वक्त आया,
हमने कहा, अब दो विश्राम।
कितनी लम्बी कथा है तेरी,
दो अब तन को आराम।।
खत्म करो लिखना अब,
देख लूँ, क्या लिखा तुमने?
थमा दिये अपने साथ सिंदूर,
जो कभी दिया था हमने।।
कहा लिपट अंकवार भर,
मुझे तुमको क्या है लिखना?
तुम बसते मेरे अन्तर्मन हमेशा,
"नवीन"कहानी अब क्या कहना!
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