सपने सपने ही रहते हैं, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सपने सपने ही रहते हैं,

सपने सपने ही रहते हैं,
जबतक न अपने बनते हैं।
हकीकत हो जाते जब,
हमेशा ही सुहावने रहते हैं।।

कभी बुलाने पर भी न आते,
अनजाने भी कभी आ जाते,
ग़र आ जाते तो लिपट जाते,
फिर न छाँह कभी वे छोड़ते हैं।

भले किसी के सामने न दीखते,
लेकिन छिपे सबके मन बसते,
न कभी शोर कोलहल करते,
लेकिन सराबोर सदा किए रहते हैं।

चाहता मन सदा उनके संग रहूँ,
बात बस केवल उन्हीं से ही करुँ,
बीच मेंं भले ही न कोई आ जाये,
'नवीन'टूट जाने पर झकझोर देते हैं।

Friday, July 26, 2019
Topic(s) of this poem: love
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