हार को हार मानने में कोई हर्ज नहीं, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हार को हार मानने में कोई हर्ज नहीं,

हार को हार मानने में कोई हर्ज नहीं,
पहले तो जयमाल ही पहनते हैं,
जिंदगी भर तो पराजय ही स्वीकार करते हैं।

Friday, July 26, 2019
Topic(s) of this poem: love
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