लगे हों उन्हीं रिश्तों को तोड़ने में
फ़ना हों गये हम जिन्हें जोड़ने में ।
मज़ा क्या मिला आप को ये बताओ
किसी को तड़पता हुआ छोड़ने में ।
जिन्हें दिल समझते रहे मुद्दतों हम
उन्हीं पत्थरो को लगे फोड़ने में ।
मेरे दिल को तोड़ो न हमदम ख़ुदारा
बहुत वक्त लगता है दिल जोड़ने में ।
हुए हैं परिंदे 'अमान 'आज घायल
ज़रा सा हवाओं का रुख़ मोड़ने में । -by sanjay amaan 09987128585
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem