वो हैं आसमान और मैं हूँ ज़मीन
दिखता दूर मिलन पर हो ऩही
फिर भी एक आस है
वो मेरे साथ है
रंग बदलता साथ में
जब वो बदलती अंदाज़ है
कभी खुशी कभी दुख की रोती वो
पर हर लम्हा मैं सहेज लेता हूँ
दिल के इस बड़े समुंदर में,
दिन हो या रात
निहारता रहता हूँ उसको
उसकी काली पीली मनमोहक सौन्द्र्य
दीवाना बनाती मुझको,
लोग जब देखते हैं इसको
कवि की कविता लगती उनको
कोई बादल को और कोई मौसम का
दीवानापन कह देता,
पर में बेचारा
दीवाना होकर भी बेगाना हूँ
दिल का हाल ना पूछो हमसे
हम तो.......
कविता भी ऩही
उसकी चन्द पंक्ति से भी दूर हूँ
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