बसंत की मदहोश हवाओं ने
कुछ याद दिलाया होगा आज फिर
रिमझिम की बारिश
कभी गिरती कभी रुकती
कुछ अहसास दिलाया होगा आज फिर
रंगीन मौसम ने
कुछ ज़ज्बात जगाया होगा आज फिर
दिल को उनके
अहसास ने धड़काया होगा आज फिर
आज मौसम रंगीन भी है बहुत
नज़रों को अहसास भी है,
मगर
ढूँढती नज़रों का ठिकाना,
बस एक ही
कोई खत या पैगाम ही मिल जाए
कई दिनों से जो ना देखा
तस्वीर उनके
तो कोई तस्वीर ही मिल जाए
दिल को तो समझा भी लू शायद
पर,
धड़कन को कैसे समझाऊं
माना वो दूर है नज़रों से
पर यादों मे तो होऊँगा ही, शायद
मिलना माना मजबूरी है लेकिन
पर धड़कन का अहसास तो होगा, शायद.....
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Na Koi Khat hai Na koi Paigham hai Na koi Tasveer hai unki... Dhadkana dil ki to majboori hai... Aaj Mausam bhi rangeen hai, Shyaad unko yeh dil dhadakane ka ehsaas ho jaaye.... Fantastic Flow of words Sharad...Beautiful lovely poem...I loved reading it...Thanks for sharing and keep writing. You write very well.