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Wednesday, September 19, 2012
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
एक बेर अरविन्द जी के शुद्ध हिंदी बाज के शौक चढलैन
वो हमेशा शुद्ध हिंदी में बात करैत सभ सा
एक बेर वो पटना गेला वो बस स्टैंड पर रिक्शा वाला के आवाज देलखिन वो हो शुद्ध हिंदी में -
वो त्रिचक्रयान चालक वो त्रिचक्रयान चालक लेकिन कोनो रिक्शा वाला हिनका जका पढ़ल होई तब ने
कोई अई बे नै कैलई ता ई इशारा सा बजेलैथ एकटा रिक्शा वाला के आ कहलखिन क्या तुम सचिवाल...य चलोगे? ? ?
वो रिक्शा वाला हिनकर बात बुझबे नै केलक वो ता खाली सेक्रटेरिएट बुझाई वो कहलक जे मालिक हमरा नाइ बुझल ऐछ की ई जगह कता छाई से? ?
अपने हमरा बतायल जाऊ हम आन्हा के ला चालब
आब अरविन्द जी रिक्शा पर बैस गेला आ वोकरा रास्ता बता ब लगला
रास्ता में कनि उबड़ खाबड़ रहै ता रिक्शा कनि उछैल जाई जय सा अरविन्द जी के दिक्कत मेहसूस होइन
वो खिसिया क वोई रिक्शा वाला क कहलखिन वो त्रिचक्रयान चालक तुम अपने त्रिचक्रयान को शनैः शनैः पदस्थ करो
वोई रिक्शा वाला के बुझेलई जे ई ता हमरा गाईर दैत ऐछ वो कहलक जे मालिक हमरा गाईर किया दाईत छि? ? ?
आन्हा चुपचाप बैसल रहू आ खाली रास्ता बताबु नै ता हमहू गाईर देने शुरू क देब
आब अरविन्द जी बुझला जे ई ता हमर बेईज्ज़ती क देत वो चुप भ गेला
आ रिक्शा अपन रास्ता पर चला लागल किछ दूर गेला के बाद वोई रिक्शा वाला के रास्ता के खराबी के कारन बैलेंस बिगैर गेलई आ रिक्शा एकटा बिजली के खम्भा सा टकरा गेलई
तै पर अरविन्द जी वोई रिक्शा वाला पर खिसिया क कही छथिन वो त्रिचक्रयान चालक तुमने अपने त्रिचक्रयान को बिद्युत के स्तम्भ से सामना करबा कर इस त्रिचक्रयान के एक चक्र को अक्र से वक्र करवा दिया अब में केसे जाऊंगा? ? ? ? ?
वो रिक्शा वाला के फेर बुझेलाई जे ई हमरा गइर दैत छैथ वो कहलकै मालिक हम आन्हा के आखिरी बेर कैह रहल छि जे हमरा गइर नै दिया नै ता बड़ ख़राब हैत आब चलू एकरा पाहिले ठीक कराबी छि तहान आगू ला जेब वो रिक्शा वाला एकटा साइकिल के मिस्त्री के पास लागेल लेकिन रिक्शा वाला के किछ कहा सा पाहिले अरविन्द जी वोई मिस्त्री के कहै छथिन अपना हिंदी में से देखियौ आन्हा सब
हे द्विचक्रयान अभियंता इस त्रिचक्रयान के चालक ने इस त्रिचक्रयान को बिद्युत के स्तम्भ से सामना करवाकर इसके अगले चक्र को अक्र से वक्र कर दिया ह कृप्या इसे सुचक्र कर दे...
वो मिस्त्री बुझलक जे हमरा ता इ गैर द रहल ऐछ आ रिक्शा वाला ता पहिलेहे हिनका कैह देने रही जे आब निक नै हैत जौं आन्हा हमरा आब गैर देब ता
आब वो दुनु गोटे आव देखलक नै ताव देलक हिनका माईर पीट क दिन में तरेगन सुझाई
आब बेचारा अरविन्द जी अपन काबिलियत पर कनैत कनैत वापस घर एला.....
आ क़सम खेला जे आब आई के बाद शुद्ध हिंदी नै बाज़ब आ हिनका माथ सा इ शुद्ध हिंदी बाज के भूत उतैर गेलैन
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Poems By shiv chandra jha