कहने को मैं विश्व की शक्ति, पर आज डरी सहमी हूँ
मुझ में मिले भीष्म, मंगल और भगत, मैं तुम्हारे देश की मिट्टी हूँ
लहू पीने की आदत मुझको, मुझे शौक समर का खूब
पर यह कैसा समर हुआ, जिससे विचलित हो मैं आज उठी
कैसे यह लहू आज चखा कि, रक्तदन्ता भी खिन्न उठी
पल में आग लगा दी मुझमे, कैसी चिंगारी आज उठी
कहती हूँ बेटा तो मुझको, नहीं सुनता आज कोई
ना राम है ना कान्हा टैगोर, तिलक ना आज कोई
देखती हूँ दरख्तों से तो, ठँठ का जंसर दिखता है
कहने वाला बुद्धिजीव वह, इसे गणतन्त्र कहता है
कहने को तो वह नेता है, गरीब, दुखी और शोषित का
पर आँगन से उसके इक, लहू का नाला बहता है
कल कल बहते इस नाले में, इक सा रंग दिखता है
आने वाला उसके दर पे, हिन्दु मुस्लिम कहता है
बड़े प्यार से विचल भाव से वह, उन बच्चों के कन्धे सहलाता है
जिनके पिता का रक्त भी, उसके नाले से बहता है
कुछ दूर जाकर वह नाला, मुझमें ही मिल जाता है
कुछ साँसो को थामे अपनी, मुझसे यह कह जाता है
'बड़ी प्यास है लहू की तुझको, विगत कई दसकों से
ले बुझा ले अपनी प्यास आज, अपने निर्दोष बच्चे से
पर ना समझना आज तेरे लिये, कोई चढ़ावा लाया है
उस शासनकर्ता ने ऐसा भी, एक तुला बनवाया है
नोट और वोट को तोलता है जिस तरह
तौल देगा कण-कण तेरा भी इक दिन उसी तरह.
बड़ी प्यास है लहू की तुझको, विगत कई दसकों से ले बुझा ले अपनी प्यास आज, अपने निर्दोष बच्चे से पर ना समझना आज तेरे लिये, कोई चढ़ावा लाया है उस शासनकर्ता ने ऐसा भी, एक तुला बनवाया है नोट और वोट को तोलता है जिस तरह तौल देगा कण-कण तेरा भी इक दिन उसी तरह. kabhi na bujhne waali pyaas jo awaam ke khoon se holi khel kar inko wo pad milta hai aur aane waali naslon ko kuchalne ke liye aur apni raah se bhatkane ke liye wo bhi desh ke naam par... khoobsurat vichaar Mithilesh... We need poets like you to bring forth the wrong doings of these politicians.10
thanx mam.... and offcourse with all your blessings and support for my motherland's respect and honour
Wonderfully narrated all the aspect of political issue, patriotism.....Beautiful poem...liked it :)
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Kya baat hai.....Ye ek sachchayi hai ki mitti hamesha lahu mangti hai....