चुरा ना था तो Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चुरा ना था तो

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चुरा ना था तो चन दोलत चुरा लेते
पूरा खजाना युही खाली कर देते
हम उफ़ तक न करते और हामी भर देते
पर छूता सा दिल तो हमें दे देते

चुरा के देख लिया तेरा मन
पूछ के भी देख लिया तेरा मन
सब में तेरी हा थी मगर तू सामने ही थी
मुझे प्यार से कुछ कहने वाली थी

तुझे मैंने अपना कह दिया
मन से मान लिया और अपना भी लिया
अब तो इन्तेजार न करा मेरे हमदम
हम तो रह देख रहे है हदम

अब तो बता ही दो क्या है तुम में ऐसा
जो हमें भा गया है दिल में ऐसा
न हा करते बनता है न ठुकराते बनता है
बस नजरो के सामने एक चेहरा घूम जाता है

तुम ही तो हो मेरे मन की मालिकन
दिल की सहमी हुई एक धड़कन
रहे मन हमारा तुझ में हरदम
देखो न लगे है हम और खड़े है अड़ीख़म

अब तो कह दो हां
या फिर दिल की तह से कह दो ना
हम न कहेंगे किसीको दिल का अफसाना
हमें आया है दिल को मनाना

दिल नहीं मानता हम आप को छोड़ दे
कह दिया है एक बार तो फिर उसे जोड़ दे
प्यार कोई रस्ते की बिकाऊ चीज़ नहीं
ठुकरा दो उसे फिर भी कोई नाचीज़ नहीं

कह ते है प्यार तो उपरवाले की देंन है
दिल से शांति और मन में चेन है
ना कोई गिला होता है न कोई रंज
बस मिलता है अनुठा प्य्रार का रंग

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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