अपनी गीली लटों को
काँधे पर बिखेरे
बारिश की फुहारों में
भीगे पेड़,
साँसों में महकती
मिट्टी की
सौंधी खुशबू,
सड़क के किनारे
बिखरा
चीड़ का पीला कौमार्य,
न जाने कब आँखों से
एक कविता
चुपचाप
धीरे से बह निकली।
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