आत्म-दाह Poem by Sushil Kumar

आत्म-दाह

उसने ब्याह के बाद,
अपने माता-पिता को छोड़ दिया।
बड़े भाई पर मुकदमा चलाया,
छोटे भाई का सिर फोड़ दिया।
सारी पैत्रिक संपत्ति उसने,
जुए और शराब में गवांई।
पहिले बहन बेचीं और,
फिर पत्नी की आबरू भी बेच खाई।
लेकिन इससे क्या,
यह तो उसका निजी मामला है भाई।
धार्मिक आस्था में तो किसी से पीछे नहीं है।
शूर-वीरता में भी किसी से नीचे नहीं है।
पिछले कई सांप्रदायिक दंगों के दौरान,
उसने,
गैर-संप्रदाय के अनेक लोग मार गिराए।
बच्चों को क़त्ल किया,
स्त्रियों के कपडे उतरवाए।
मानवता के विनाश और धर्म की रक्षार्थ,
प्रयुक्त किये जाने वाला,
उसके पास हर असला था।
क्योकि यह धर्म का मसला था।
वह सदैव धर्म के लिए ही जिया है,
और धर्म के लिए ही मरेगा।
यदि बाबरी-मस्जिद और...
राम-जन्म भूमि का निर्णय,
शीघ्र तय न हुआ तो वह,
आत्म-दाह करेगा।
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