रूबी कुतिया ने,
बच्चों में खेल रहे,
अपने पिल्ले 'टॉमी' को डाटा।
खबरदार! जो तूने किसी,
इंसान के बच्चे को काटा।
बेटे,
बदला लेना इंसान की फितरत है।
वह अपने बाप से नहीं चूकता,
तुझे क्या छोड़ेगा।
तेरे काटने पर,
इंसान का बच्चा,
अधिक से अधिक रो देगा।
पर यदि उसने तुझे काट लिया,
तो तू,
कुत्ते होने का एहसास भी खो देगा।
कुत्ते होने का एहसास!
अरे इसके अलावा,
और है ही क्या हम गरीबों के पास।
यही वह बोध है जो हमें,
वफ़ादारी, ईमानदारी और स्वामिभक्ति जैसे,
गुणों से जोड़ता है।
जबकि इंसान,
इन गुणों का सिर्फ लबादा ओढ़ता है।
ठीक है, हम दोगले हैं।
हमारी पैदाइश अवैध है।
शायद इसलिए कि हमें,
अपने बाप का पता नहीं।
पर इंसान, उसे क्या कहा जाये,
जिसे अपने-आप का पता नहीं।
इसीलिए कहती हूँ बेटे,
दूर रह इनसे,
मत खेल इनके साथ।
पिल्ला बोला - माँ,
मेरी समझ में नहीं आती,
तुम्हारी बात।
तुम्हें तो मेरी हर बात,
बुरी नज़र आती है।
जरा सोचो,
इन बच्चों की माँ मुझे,
बढ़िया, स्वादिष्ट भोजन खिलाती है।
आखिर इसमें क्या हर्ज़ है!
बेटे को सुखी देखना तो,
हर माँ का फ़र्ज़ है।
माँ मुस्कुराई, बोली-
आखिर आ ही गया न, सोहबत का असर,
हो गया न इंसान की तरह खुदगर्ज़।
और पूछता है, इसमें क्या हर्ज़।
बेटे, इन बातों को तो क्या समझेगा,
अभी बच्चा है।
पर याद रख!
कोठी की चौकसी करने से,
गलियारे का कुत्ता बना रहना,
कहीं अच्छा है।
जो खुद जंजीरों में जकड़ा है,
वह दूसरों की रक्षा कैसे कर सकता है!
जिसका स्वाभिमान मर चुका है,
वह जाति, समाज और देश के लिए,
कैसे मर सकता है!
माँ की धिक्कार ने,
बेटे में प्राण फूंक दिए।
उसने मुंह के सारे पकवान,
थूक दिए और बोला-
माँ, आज से मेरे मन पर,
मेरी आत्मा पर,
सिर्फ तेरा अधिकार है।
तेरा बेटा अब,
खुदगर्ज़ नहीं, खुद्दार है!
मेरे ऊपर जो,
इंसानी फितरत का असर था,
वह आज तूने साफ़ कर दिया।
माँ, एक बार कह दे,
मुझे माफ़ कर दिया।
मेरा यह वादा है,
तुझे दिया वचन,
मैं कभी नहीं तोडूंगा।
सब कुछ छूट जाये,
पर अपना गलियारा नहीं छोडूंगा।
कोठी के बच्चे, बड़े सभी,
उन दोनों को बुला रहे थे।
पर वे दोनों माँ-बेटे,
इंसानों से दूर,
अपने गंतव्य की ओर जा रहे थे।
एक पल को,
दोनों ने पीछे मुड़कर देखा,
और फिर चल दिए,
मानो, कह चले हों,
देखो, हम तुम्हारा,
कुछ भी नहीं ले जा रहे हैं।
हम कुत्ता होने का एहसास लिए,
आये थे।
और उसी के साथ जा रहे हैं,
तुमसे दूर, बहुत दूर...बहुत दूर...
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