स्त्री- भृण- हत्या
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
छाई बनाकर रख दिया, बिछाई बनाकर रख दिया
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई सबने मुझे
परछाई बनाकर रख दिया
इंसान जैसे मैं नही, जब चाहे वार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
लालन पालन मेरा दोयम, शिक्षा दिक्षा मेरी थोथी
मुझसे जनने वालों को हैं, मुझसे ज्यादा प्यारी पोथी
जानवर तक की आँखे खुल जाती हैं, पर तुम नैन उतार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
दान मेरा कर देते हों, जैसे कोई चीज हुँ मैं
अहेसान मुझ पर कर देते हों, जैसे कोई खीज हूँ मैं
निकाल अपने घर से तुम, जैसे दुत्कार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
मां बहन बेटी कहे मुझको, बेबस तुमने कर दिया
मैं प्रकृती हूँ पर मुझको, बेकस तुमने कर दिया
प्रकट तुम्हे मैं करती हूँ, और तुम मेरा अस्तित्व नकार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
स्त्री- भृण- हत्या क्यों होती है
क्योंकि समाज ने स्त्री को, फर्क बनाकर रख दिया
इसलिए असहाय मां-बाप, गर्भ में ही बेटी का गला घोंट देते हैं
क्योंकि समाज ने स्त्री को, नर्क बनाकर रख दिया
सो 'ऐ सामाजिक प्राणीयों' तुम, कौनसा मुझे स्वर्ग- दुलार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
सवाल 'स्त्री-भृण हत्या' का नहीं हैं
सवाल हैं 'पुरुष-साम्राज्यवाद' अथवा 'स्त्री-शोषण' का
पहले 'पुरुष-साम्राज्यवाद' अथवा 'स्त्री-शोषण' बंद होना चाहिये
उससे पहले कैसे कहते हो कि, 'स्त्री-भृण हत्या' बंद होनी चाहिये
क्या तुम इतना भी नहीं जानते, जो नपुंसक लेक्चर देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
(डॉ. रविपाल भारशंकर)
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