'सच को सच और; झठ को झुठ करके जानता,
इंसान वो जो शब्द और; निश: ब्द दोनो जानता.
जिंदगी ये कौनसी; जो जीये जाए मरे,
इंसान वो जो जिंदगी; और मौत दोनो जानता.'
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स्त्री- भृण- हत्या
तुम मुझे कहाँ प्यार देते हों
अच्छा हैं जो तुम मुझे, पेट में ही मार देते हों
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आना जाना ऐसा समा, मिलना बिछड़ना ऐसा समा
बाग में जब गुल खिला, खिल उठा मन माली का
शाख से जब वो गिरा, मन मेरा रो पडा
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कविता है हो जाना, कविता है खो जाना
कविता एक दिन नहीं, कविता है रोजाना
कविता तेरा मेरा, एक रूप एक दर्पण
कविता तेरे मेरे, दिल की एक धड़कन
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एकबार जिंदगी पे, ऐतबार करके देखो
माहौल जिंदगी है, जरा प्यार करके देखो
||धृ||
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'व्यर्थ तेरी इबादत; व्यर्थ तेरी भक्ती,
बरबाद हो रहीं हैं; तेरी सारी शक्ती.
शिक्षा से हीं होगा तेरा कायाकल्प,
शिक्षा से हीं होगी; स्त्री तेरी मुक्ती'.
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मैं राजा, तु राणी
मैं तेरी दीवानी हूँ
राज में मेरे होगा वही
जो मैं कहूँ
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हरेक पल है साथ साथ तु
यही लगे है आस पास तु
तु इक लगाव है
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ऊचु चूचु सोनी चिड़ीया,
ऊलु लूलु प्यारी गुड़ीया
तेरे मन का भेद मै जानू,
जानु जानीया, जानु जानीया
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बेकरार है, मेरी नजर,
तेरे लिए
पतंगा मेरा दिल जले
बेशुमार है, दिल में मुहब्बत
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