कल रात मैंने एक मच्छर मारा Poem by preeti singh

कल रात मैंने एक मच्छर मारा

कल रात मैंने एक मच्छर मारा
दबे पांव, ना गीत भी गाया
मोटा तगड़ा स्याह काल-सा
लेकर फिरता दबी लालसा

मैं चुपके से देख रहा था
माँ के कमरे में बैठा था
और वो दुष्ट, निशाचर दूत
अँधेरे में जैसे, कोई भूत

घर की लेता फिरता था टोह
ना भय, ना कोई मोह
पूरे घर के चक्कर काटे
दांत दिखाकर मारे ठंहाके

माँ कमरे में सोई थी
जैसे सपने में खोई थी
देख के माँ को सोता, वो
काटने दौड़ा माँ को, जो

मैंने झट से पंखा फेरा
ढक दिया माँ का सुंदर चेहरा
पर माँ कभी झटकती पल्लू, बदलती भाव
तो कभी हटाती हाथ, पटकती पाव

खनकती चूड़ी, सरकती लट
तो कभी बदलती करवट
कुछ बुदबुदाती, कभी कुछ गुनगुनाती
पर माँ कुछ कर ना पाती

अब मुझको था गुस्सा आया
दादा जी का डंडा मैं लाया
शायद भूल गया तू कद
कैसे आया पार तू सरहद

क्या नहीं पता तुझे मेरी हिम्मत
क्या होगी अब तेरी गत
बच्चा बच्चा वीर यहाँ का
करता अर्पण प्राणों का
कैसे तुने माँ को झांका
ना करने दूँगा बाल भी बाँका
अगर तू आया धोके-से
मात्र हवा के झोंके-से

देता हूँ तुझे एक और अवसर
दौड लगाके भाग जा सरपट
पर अगर सुनी नहीं तुने बात
होगा फिर यहाँ सिंहनाद

कुछ रुका, मानो नींद से जागा था
यह देखो वो भागा था
अब माँ सोई थी, चैन की सांस
रहा था कोई बुड्ढा खांस

मैंने भोहें टेडी करके
देखे चारों कोने घरके
ओह! इस बार समूह में आया है
मत भूल, तुच्छ तेरी काया है

बन कर पात पवन संग डोलेगा
अस्तित्व आज तू खो देगा
अब भागा मैं डंडा लेकर
देखे माँ को कोई छूकर

चल भाग कहाँ तू बच के जायेगा
अब नीड नहीं तू पायेगा
लो चार गये अब आठ गये
कितने मूर्छित और मृत पड़े

प्यारी माँ तू सो ले अब
कोई ना झांके तुझको अब
बैठा हूँ मैं प्रहरी बनकर
छाती चौड़ी, सीना तनकर

कल रात मैंने एक मच्छर मारा
Saturday, January 3, 2015
Topic(s) of this poem: patriotic
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
it is a cute patriotic poem. it is narrating by a small kid.
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