मेरा बचपन Poem by preeti singh

मेरा बचपन

Rating: 4.0

जब मैं चार बरस कि थी,
छोटी प्यारी बच्ची थी|
हिरनी कि तरह कुंदी फांदी,
रोज देखती दादी नानी |

खरगोश सी निर्मल थी काया,
चंचलता थी धन दौलत माया|
कोयल सी मीठी थी बोली,
कोमल जैसे सिंदूर और रोली|

पैरों में पायल कि झन- झन,
हाथों में कंगने कि खन- खन,
माथे पर बिखरे हुए बाल,
ठुमक ठुमक के चलती चाल|


थोड़ी दूर पे धप गिर जाती,
और जोर जोर चिल्लाती|
घुटनों के बल सरक सरक कर,
चट कर जाती मिटटी कंकड|

तुतला तुतला कर करती बात,
खूब खाती मैं सबके कान|
भूख लगते ही मुह बनाती,
झट माँ के आँचल में छिप जाती|

मेरा बचपन
Friday, January 9, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 30 September 2017

A refined poetic imagination, Preeti. You may like to read my poem, Love And Lust. Thank you.

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