preeti singh Poems

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कल रात मैंने एक मच्छर मारा
दबे पांव, ना गीत भी गाया
मोटा तगड़ा स्याह काल-सा
लेकर फिरता दबी लालसा
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2.
मेरा बचपन

जब मैं चार बरस कि थी,
छोटी प्यारी बच्ची थी|
हिरनी कि तरह कुंदी फांदी,
रोज देखती दादी नानी |
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