चिडियां रोती है गाती है Poem by Lalit Kaira

चिडियां रोती है गाती है

चिड़ियाँ रोती है गाती है
ये किसको दर्द सुनाती है
आंसू को छुपाये पलकों में
कविता गाती मुस्काती है
कुछ शब्द दोगले होते हैं
मन में रेखा खिंच जाती है
बाहर का खाना ठीक नहीं
माँ रोज मुझे समझती है
मैं तारे गिन सो जाता हु
तू रोज कहाँ आ पाती है
अखबार डराता है मुझको
जब बेटी बाहर जाती है
इस बरस खुदा भी रूठा है
बरबस धरती हिल जाती है

Monday, May 18, 2015
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 18 May 2015

A beautiful poem. Thanks for sharing.

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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