चिड़ियाँ रोती है गाती है
ये किसको दर्द सुनाती है
आंसू को छुपाये पलकों में
कविता गाती मुस्काती है
कुछ शब्द दोगले होते हैं
मन में रेखा खिंच जाती है
बाहर का खाना ठीक नहीं
माँ रोज मुझे समझती है
मैं तारे गिन सो जाता हु
तू रोज कहाँ आ पाती है
अखबार डराता है मुझको
जब बेटी बाहर जाती है
इस बरस खुदा भी रूठा है
बरबस धरती हिल जाती है
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A beautiful poem. Thanks for sharing.