मन की बात: 3 प्रेम.....! Poem by Devanshu Patel

मन की बात: 3 प्रेम.....!

Rating: 5.0

मन की बात: 3

प्रेम.....!

प्रेम प्रभु की देन है, सब से ऊँची सगाई
रब से, सबसे प्रीत हो, या हो भाई, लुगाई.....

प्रेम बस एहसास है, जैसे चल रही सांस,
तन से जो छूटे नहीं, छूट गई फिर नहीं आश......

प्रेम मन का भाव है, शब्दों से ना तोल
कर 'उसे' जो प्यारा लगे, मुँह से कभी ना बोल......

प्रेम किया नहीं जात है, होवत अपने आप
जैसे भानु उदय से, जल हो जावत भाप.....

लेन-देन होवत नहीं, कम मिला, (तो)लिया काट
देन ही सच्चा प्रेम है, जो बिकता नहीं हाट......

प्रेम भया तो जग दिखे मानों ख़ुशी अंबार
चेहरा फूल सा खिल उठे, दूर हो मन गुबार.....

प्रेम मिला तो सब मिला, खुद को मान अमीर
जो पाया नहीं प्रेम तो, राजा भी रंक फ़क़ीर......

जो प्रभु दिखा प्रेम में, (या)प्रभू में दिखें यार
प्रभु 'प्रिया' या 'प्रियतम', तो है अनूठा प्यार.....

© देवांशु पटेल
Chicago
6/10/2018

मन की बात: 3 प्रेम.....!
Monday, June 11, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 12 November 2018

A great thought...actually love should be like this...the last two lines are awesome......you have described the true meaning of love very beautifully...

1 0 Reply
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Devanshu Patel

Devanshu Patel

Kapadwanj, Gujarat (India)
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