A-063. इतने बेचैन क्यों हो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-063. इतने बेचैन क्यों हो

इतने बेचैन क्यों हो 27-6-15 6: 43AM

इतने बेचैन क्यों हो.……….
कभी बैठते हो
कभी भाग जाते हो
कभी रूठ जाते हो
कभी खुद ही मनाते हो
कभी बोलते हो
कभी खुद ही शरमाते हो
कभी पास आते हो
कभी दूर जाते हो
एक पल शांत होते हो
दुसरे पल ही घबराते हो
कभी उदास होते हो
कभी मुस्कराते हो
कभी आँखें नाम होती हैं
कभी खिल जाते हो
कभी गुम हो जाते हो
कभी खुद को छिपाते हो
कभी चुप हो जाते हो
कभी खुद ही बताते हो
कभी दूर जाते हो
कभी करीब आते हो
समझ ये नहीं आया की जब मैं तेरे साथ हूँ
तो क्यों घबराते हो और इतने बेचैन क्यों हो। ………… इतने बेचैन क्यों हो

Poet; Amrit Pal Singh Gogia
My blog; gogiaaps.blogspot.in
Face book; Attitude: Dreams Come True
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Sunday, February 28, 2016
Topic(s) of this poem: comforting
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