A-065. एक अदद चाचू उधार दे दो Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-065. एक अदद चाचू उधार दे दो

एक अदद चाचू उधार दे दो-9.8.15—5.20PM

एक अदद चाचू उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो
मुझे कुछ और नहीं चाहिए
चाचू का थोड़ा सा प्यार दे दो

पापा के पास टाइम नहीं है
घूमना फिरना क्राइम नहीं है
घूमने फिरने मैं कैसे जाऊँगी
सहेलियों को कैसे बताऊँगी

मेरे पापा कितने अच्छे हैं
जबान के कितने पक्के हैं
जब भी दफ्तर जाते हैं
वहीँ के होकर रह जाते हैं

खिलौने अभी और लाने हैं
सहेलिओं को दिखलाने हैं
कपड़े भी उनके सिलवाने हैं
फिर धोकर तह लगाने हैं

चाचू होते तो कितने प्यारे होते
खरीद के ला रहे गुब्बारे होते
अपने कंधे पर मुझे घुमाते होते
मेरे गुस्से पर वो मुस्कराते होते

एक अदद बुआ उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो
मुझे कुछ और नहीं चाहिए
बुआ का थोड़ा सा प्यार दे दो

बुआ होती तो कितनी प्यारी होती
बालों की चोटी भी मेरी न्यारी होती
अपने हाँथों से मुझे खिलाती होती
मैं रोती और वो मुझे सुलाती होती

हम साथ साथ घूमने जाया करते
गुड़ियों के संग जश्न मनाया करते
एक दुसरे को छेड़ गुदगुदाया करते
आपस में गले लग मुस्कराया करते

एक अदद मासी उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो
मुझे कुछ और नहीं चाहिए
मासी का थोड़ा सा प्यार दे दो

मासी होती तो कितनी प्यारी होती
माँ जैसी होती और मैं दुलारी होती
अपनी बाँहों में ज़ज्ब सुलाती होती
मैं रूठ जाती और वो मनाती होती

जितना दिल चाहता लड़ लेती मैं
उसके सामने अकड़ के खड़ लेती मैं
अपने दिल की हर बात कर लेती मैं
दिल चाहता तो बाँहों में भर लेती मैं

एक अदद मामा उधार दे दो
इस रिश्ते का मुझे उपहार दे दो
मुझे कुछ और नहीं चाहिए
मामा का थोड़ा सा प्यार दे दो

मामा होता तो बात कितनी प्यारी होती
लाड़ प्यार करता और मैं दुलारी होती
जहाँ दिल करता घूमने जाया करती
जेब ढीली करती मौज मनाया करती

रिश्तों का अम्बर भी कितना सुहाना है
हर रिश्ता अपने आप में एक खजाना है
इन्ही रिश्तों पर हमने हक़ आजमाना है
ये हमारे हैं इनके प्यार को अपनाना है

इनके होते चिंता से मुक्त हो जाती
द्वार पर मेरे जब बारात मेरी आती
चाचा चाची बनते मेरे साथी
बुआ फूफा बनते मेरे हाथी
मासी मौसा बनते मेरे अपने
मामा मामी करते पूरे मेरे सपने

एक अदद.… बस एक..... अदद चाचू उधार दे दो

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

Sunday, February 28, 2016
Topic(s) of this poem: relationships
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Families are becoming small. Just looking at a future, which will spell by itself.
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