A-101. आज सुबह….! Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-101. आज सुबह….!

Rating: 5.0

आज सुबह….! 12.4.16—8.14 PM

आज सुबह सूर्य देवता आये
और लगे मुझसे बतियाए
हम बोले हम नहीं बतियांगे
बोले आप कैसे रूठ जायेंगे

मैंने पूछा
रोज सुबह आते हो
शाम को चले जाते हो
यह कौन सा तरीका है
और हमसे ही छुपाते हो

पूरब से आते हो
पश्चिम को जाते हो
फिर भला पूरब से कैसे आते हो
कोई गुप्त रास्ता बन रखा है
जो हमसे ही छुपाते हो
या कोई जादू है तो क्यों नहीं सिखाते हो

आज सुबह सुबह कैसे आ गए
साड़ी दुनिया पर क्यूँ छा गए
सिन्दूर क्यूँ इतना ढोते हो भला
जो उस रंग में खुद ही नहा गए

दोपहर को क्या हो जाता है
आग की तरह भड़कने लगते हो
जो इतना गुस्सा क्यूँ चढ़ जाता है
शोले की तरह दहकने लगते हो

शाम होते ही क्यूँ थक जाते हो
रौशनी मद्धम हो जाती है
बड़े थके थके से नज़र आते हो
कहाँ छोड़ आते हो इतना गुस्सा
कैसे इतने शीतल हो जाते हो
कितने ही रूप बनाते हो

मैने पूछा
रात को डर लगता है क्या
मुँह छुपाये छुपाये चले जाते हो
इतना क्यूँ घबरा जाते हो
जो मुझसे ही कन्नी कटाते हो

मैंने पूछा
तुम कहाँ चले जाते हो
यह भी नहीं बताते हो
अपनी सुध ले लेते हो
चुपके से सीधे खिसक जाते हो

कहाँ गुजारते हो अपनी रतिया
क्यूँ नहीं सच बताते हो
शर्माने से अब कुछ नहीं होगा
मुझसे ही क्यूँ ये बात छुपाते हो

अपनी गलती अब कैसे बताये
थोड़ा सा संभल ऊपर उठ आये
चेहरा धो के साफ़ किया
थोड़े सजग हुए चेहरा चमकाए

नींद से बेखबर भी हो गए थे
थोड़े से सजग भी हो गए थे
लगे अपनी बातें सुनाने
कभी कभी बीच में लगे मुस्कराने

बोले
मिलने को जाता हूँ यार
जहान के उस मालिक से
रहता हूँ उसकी खुदाई में
मर जाता हूँ जिसकी जुदाई में

हर जीव से मिलना मेरा धर्म है
चौबीसो घंटे चलना मेरा कर्म है
चाहे कोई गरीब है या अमीर हो
चाहे किसी भी माँ का शरीर हो

फर्क नहीं रखना उसका आदेश है
कोई कमी पेशी नहीं मेरा परिवेश है
जब मैं तुमको छोड़ कर गया था
मैं कहीं और कूच कर गया था

रोज सुबह यूँ ही तुम आया करो
मीठी मीठी प्यारी बातें बताया करो
कभी कभी तो मेरा जी भी घबराता है
मेरा भी वक़्त यूँ निकल जाता है

तेरी बात चीत लगी मुझे बहुत ही निराली
इसीलिए तुम बहुत याद आये मेरे 'पाली'
देखो आज मैं तड़के ही आ गया हूँ
तेरी बाँहों में खुद ही समा गया हूँ

अच्छे लगते हो सब को बताया करो
रोज सुबह खुद भी आया करो औरों को भी लिवाया करो
रोज सुबह खुद भी आया करो औरों को भी लिवाया करो

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-101. आज सुबह….!
Wednesday, April 13, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
COMMENTS OF THE POEM
Ratnakar Mandlik 14 April 2016

A marvelous flight of imagery is visible in selection of the theme as also the meaningful and thought provoking conversation with the Sun. Thanks for sharing.10 points.

0 0 Reply

Thank you so much for your appreciation! You inspired me!

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Gajanan Mishra 13 April 2016

beautiful poem, the morning, tghe sun and the sunshine and we all here..pl read my poems..

0 0 Reply

Thank you so much for your appreciation! You inspired me! I will read your poems also! Thanks again

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