A-072. क्यूँ? Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-072. क्यूँ?

Rating: 4.5

क्यूँ? 10.4.16—5.00 AM

क्यूँ हाँथ छुड़ाते हो
दूर भी तो नहीं जाते हो
क्यूँ अश्क बहते हो
जब गले ही लग जाते हो

क्यूँ मुखड़ा छुपाते हो
जब करीब ही आ जाते हो
क्यूँ इतने वार करते हो
जब प्यार जताते हो

मुझसे कैसा शर्माना
नज़रें भी तो मिलाते हो
नज़रें क्यूँ झुकाते हो
जब खुद ही समा जाते हो

मुझसे क्या छुपाना
खुद ही चले आते हो
हर बात जेहन में छिपी
इक इक करके बताते हो

दूर भला जाने से क्या फायदा
सीने से खुद ही तो लग जाते हो
नज़रें घूमाने से भी क्या फायदा
बे रोक टोक देखे चले जाते हो

रौशन करते हो शमा
पास बैठाने के लिए
फिर क्यूँ बुझा देते हो
केवल मुस्कराने के लिए

सीने में मेरे क्या ढूँढ़ते हो
कुछ भी तो नहीं छुपा है

इतनी सारी जद्दो जहद क्यूँ करते हो
बस..! केवल मेरा प्यार पाने के लिए..?
बस..! केवल मेरा प्यार पाने के लिए..?

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

Saturday, April 9, 2016
Topic(s) of this poem: romantic
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 09 April 2016

प्रेम के अनेक भाव लिये एक सुंदर कविता को पढ़ने का अवसर देने के लिये धन्यवाद, मित्र अमृतपाल जी.

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Thanks again for taking out your valuable time & for reading my poems & making comments! You inspire me. Thanks

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