हाँ जमूरा हूँ 15.8.16- 7.29 AM
काठ की हाँडी अग्नि सवार है
जिंदगी के दिन केवल चार हैं
बचपन जवानी वृद्ध वयोवृद्ध
जिंदगी से नहीं कोई तकरार है
अच्छे पुत्र का सपना अच्छा है
अच्छे मित्रों वाली बात पुरानी है
अच्छा पति कभी हुआ ही नहीं
पिता होना जज्बाती कहानी है
जिंदगी के तमाम रंग अधूरे हैं
एक नाटक व्यंग और जमूरे हैं
सच झूठा है झूठ भी मक्कार है
हर राग का अपना ही संस्कार है
रिश्ते भी सारे झाग से भरे हैं
नाम से ही जीवित वैसे मरे हैं
रिश्ता अपनों से कोई पास नहीं है
अपनेपन का भी एहसास नहीं है
झूठ और मक्कारी से बने ये रिश्ते
किसी का भी कोई ऐतबार नहीं है
मेरे सज्जन मित्रों और सहेलियों
तुम भी उलझ जायोगे पहेलियों
हाँ मैं अधूरा हूँ फिर भी पूरा हूँ
मेरा यही काम है- हाँ जमूरा हूँ
…………….. हाँ जमूरा हूँ
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'
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jhut aur makkari se bane ye riste..
Gajanan Ji, Thank you so much for your comments & sharing. Gogia