A-075. तुम खुद ही Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-075. तुम खुद ही

Rating: 4.5

तुम खुद ही 7.4.16- 5.15 AM

तुम खुद ही बने खुदा की तस्वीर हो
तुम खुद ही बने अपनी तकदीर हो
किधर देखते हो वहां कोई भी नहीं
इधर देखो तुम ही अपनी तदबीर हो

दिखता नहीं खुदा खुद को देख लो
अपनी नज़रों से खुद का समवेद लो
परखो जिंदगी की हर एक तरंग को
जानो जरा शरीर के हर एक अंग को

परखो जरा सा अपनी जुबान को
परखो जरा सा अपनी पहचान को
एक पल पहले जिसके अम्बार थे
दूजे ही पल बिखरे सब ख्वार थे

कौन था जिसने निर्मित किया था
तुमने ही इसको सृजित किया था
खुशियां के डोले भी तेरे बोल थे
दुःख संकट जो बोले तेरे बोल थे

जिसने बोला खुदा हूँ खुदा हो गया
जिसने बोला जुदा हूँ जुदा हो गया
तुमने कहा फ़िदा तुम फ़िदा हो गए
तुमने कहा सदा तुम सदा हो गए

हर तस्वीर तुमने खुद ही बनाई है
हर तस्वीर तुमने खुद ही सजाई है
किस्मत भी वही बनकर आयी है
शहनाई वही जो तुमने बजाई है

जो तुमने कहा था वही तो तुम हो
किसी का दोष नहीं क्यों गुम हो
गरिमा भी तेरा उपवन भी तेरा है
करिश्मा भी तेरा खेल भी तेरा है

तेरे ही शब्द हैं तेरा ही मान है
तेरी ही कद्र है तेरा सम्मान है
अपने शब्दों की लाज बचा ले
वही जिंदगी है वही अभिमान है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

Wednesday, April 6, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
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