A-095. बात यूँ आगे बढ़ी Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-095. बात यूँ आगे बढ़ी

बात यूँ आगे बढ़ी 15.3.16—6.18 AM

बात यूँ आगे बढ़ी

अरमान उसके थे
ख़्वाब मेरा भी था
जवानी उसकी थी
शवाब मेरा भी था

वक़्त गुजरता गया
माली और फूल की तरह
खुशबू बिखरती गयी
शमा के नूर की तरह

कदम सरकने लगे
किसी सरकंडे की तरह
प्यार पनपने लगा
किसी हथकंडे की तरह

कारवां आसमान का
झुकता जमीं को था
दूर निगाहों से परे
मिलता हम से ही था

हम भी बेख़ौफ़ हुए
नज़रें मिलाते हुए
वो भी करीब आये
थोड़ा शरमाते हुए

वक़्त हमसफ़र हुआ
दोनों मंजिलों का
प्यार अग्रसर हुआ
दोनों संग दिलों का

तन्हाईयाँ भी खूब कटीं
यादों के मँझरों संग
फूल भी खूब खिले
हर मौसम के हर रंग

इश्क़ परवान हुआ
खुदा की मजलिस में
खूब ढोल नगारे बजे
बचा न कोई गर्दिश में

मेरी कविता आज भी यूँ ही आती है
कभी खुले दिल कभी शर्माती है
कभी ढोल बजाती मुझे डराती है
कभी प्यार से गले लग जाती है
कभी रूठ कर भाग जाती है
पर आती है…………………….
मेरी कविता आज भी आती है
मेरी कविता आज भी आती है …….

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

Tuesday, March 15, 2016
Topic(s) of this poem: love and friendship
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