A-104. एक सुबह..........! Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-104. एक सुबह..........!

एक सुबह..........! 17.7.15—5.58 AM

एक सुबह..........!
चाँद तारों के संग बिताने को जी चाहता है ………!

कैसी वो सुबह होगी, कैसा वो मंझर होगा
एक सुन्दर तस्वीर होगी या पूरा समुन्दर होगा
काला काला चाँद होगा, तारों से घिरा आसमान होगा
कैसा वो नील गगन होगा, कैसा वो सुन्दर जहान होगा

कैसा फिर सूरज होगा और कैसी शुरुआत होगी
कैसी वो बात होगी, कैसी मुलाकात होगी

चाहत के सपने होंगे, सपनों की बरसात होगी
एक नयी जिंदगी से नयी मुलाक़ात होगी
क्या वो रात अँधेरी भी साथ साथ होगी
या वो फिर अमावस की कोई बात होगी

रात को निकलते वो रात्रिचरों की वो आवाजें
वो झिंगुर की खनकती हुई वो तीखी साजें
कुत्ते भौंक भौंक नींद उड़ायें और सियार गीत गाये
ऐसी वो कौन सी बात होगी, जो एक मिसाल होगी

वो सन्नाटे का शोरगुल महकती फिजाएँ
वो रौशनी का डर जो सब को सताये
चोर कहाँ जायेंगे, पाप कैसे कमांएगे
अँधेरे में जो रौशनी लेकर घूमते थे कभी
क्या अपना मुँह अपनी हथेलियों में छुपाएंगे

ऊँची पहाड़िओं पर बर्फ के टीले
चाँदनी में डूबे वो पर्वत अकेले
पर्वतों पर चांदनी जैसे कोई मोर
वो झरनों का शोर करे भाव विभोर

वो नदियों का बहाव जिधर हो झुकाव
उसका उतावलापन जैसे उसका स्वभाव
उसकी मस्ती जैसे रह न जाये कोई चाव
कोई चिंता नहीं जितना भी हो बिखराव

उछल उछल कर चलना, सोलह सिंगार करना
जवानी की सारी हदें जैसे आज ही पार करना

वो बल खाती, मुस्कराती, छटाएँ बिखेरती
हँसती हँसाती छिड़ी अदायें बिखेरती
छेड़ छाड़ करती, ओढ़नी समेटती
कूद फांद करती और छलाँगें मारती
यहाँ गिरी वहां गिरी, फिर भी है भागती

कैसे हर एक पत्ता चांदनी चुराएगा
कैसे वो फिर लोगों को बताएगा
चांदनी रात में हम साथ साथ रहते हैं
सर्दी हो गर्मी हो एक साथ सहते हैं

बारिश का मौसम भी क्या खूब गवारा है
बदन भींगा और चांदनी का अपना ही नज़ारा है
हल्की हल्की ठण्ड की थोड़ी थोड़ी सिहरन में
एक दूसरे का दोनों को कितना सहारा है

हर पहर का मौसम कैसे खुद को दर्शाएगा
कैसे वो सबको यह बात भी बताएगा
वो रात भला कैसे सम्भलती थी
बर्फ की चादर कैसे ओढ़ कर निकलती थी

एक सुबह..........!
चाँद तारों के संग बिताने को जी चाहता है ………!

Poet; Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-104. एक सुबह..........!
Monday, April 4, 2016
Topic(s) of this poem: romantic
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