A-112एक बार सनम Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-112एक बार सनम

A-112एक बार सनम 11-5-15

एक बार सनम हम तेरी यादों में खो गए
तन्हा क्या हुए तेरे आगोश में ही सो गए

तुमने जो हमें अपना कहकर पुकारा था
कितना हसीन सपना कितना प्यारा था

कहाँ चली गयी तुम अब तक तो यहीं थी
बहुत ढूँढा किया मगर क़िस्मत में नहीं थी

आजू बाजू भी हमने देखा सारा छान मारा
कोई मिला भी नहीं अब किसका है सहारा

खुदा को भी कर डाली मिन्नतें हमने हज़ार
छोटा सा बच्चा हूँ भाई सुन ले मेरी पुकार

मत दिया करो तुम ऐसा सपनों का संसार
जिसमें इतनी ख़ुश्बू भी हो इतना हो प्यार

आज के बाद गर वो मेरे सपनों में आएगी
तेरी कसम वह फिर कभी लौट न पायेगी

जब जाने न दूँगा तब बात समझ आएगी
देखना तेरी नियत फिर कितना पछताएगी

क्या हक़ तुम्हें उसे छीन कर ले जाने का
तुमने ही दिया था यह हक़ है परवाने का

जब छीन ही लिया तुमने मेरी दीवानी को
मेरे दर्द भी समझते या थोड़ा परेशानी को

तूने अपने तरीके से सजा तो सुनानी थी
मुझे चुन लेते तो क्या होनी परेशानी थी

जुदाई का दर्द भला कैसा सहा जाता है
हो जाये कोई जुदा तो कैसे रहा जाता है

अक्ल आ जाती तुमको भी सही ठिकाने
फ़िदा हुए होते जबरिश्ते पड़ते निभाने

दर्द समझ आ जाता तुमको भी तब्बस्सुम
तुम भी जुदा हुए होते उनसे भी कभी तुम

अल्प विधी बिमारी बनी थोड़ी लाचारी थी
तमन्ना बड़ी थी थोड़ी किस्मत की मारी थी

अब एक इल्तज़ा है तुमसे सुन ए मेरे खुदा
मतकर अपनों को तुम कभी अपनों से जुदा

सुना है कि जो तेरा दिल आये कर सकता है
सुना है सब की सुनता है मदद कर सकता है

बहुत समझता है न खुदा खुद को फनकार
कर सकता है तो कर मेरे सपने को साकार

कर सकता है तो कर मेरे सपने को साकार

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-112एक बार सनम
Thursday, January 18, 2018
Topic(s) of this poem: love and friendship,relationship,romance
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