A-119 शिकायतें 21.1.18- 5.34 AM
शिकायतें खुल के करो बग़ावती बात करो
अपने दिल की सुनो खुल के इज़हार करो
रह न जाये परदे के पीछे कुछ राज़ बनकर
मत खामोश रहो उनका भी पर्दाफ़ाश करो
निगाहों से देखो थोड़ी हक़ीक़त भी जानो
थोड़ी सज़ग भी रहो खुद पे ऐतबार करो
जमीं को कुरेदो न उँगिलयों की ज़हमत दो
अपनी फाँसी का फंदा स्वयं न तैयार करो
तेरी खामोश निगाहें क्यों कर तड़प रहीं हैं
इतनी ख़ामोशी भला कुछ तो विचार करो
तेरे चेहरे की उदासी व तेरे होंठो की कम्पन
यूँ अरमानों को साथ न तुम खिलवाड़ करो
उलझे हुए गेसुओं संग उलझे तुम भी कहीं
आँखों में नमीं के आने का न इंतज़ार करो
पीछे मुड़ मुड़ के देखना दर्शाता है तेरी तड़प
एक तोहमत है यह कह दो इक़रार तो करो
हर मुलाकात बनी एक उल्फत एक तोहफा
मिलने की रस्म अदा कर अब न इंकार करो
तेरी हर मुलाकात एक ज़ज़्बा है प्यार का
मत रोको इसे आने दो फिर से प्यार करो
जो दिल में आता है उसे कह दे मुख पर मेरे
तमाचा न सही बातों का थोड़ा इज़हार करो
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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