A-132. रुक रुक के Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-132. रुक रुक के

रुक रुक के 5.4.16—10.00 PM

रुक रुक के दस्तक किये वो देता है
शान्ति हर पल की भंग किये देता है

उसकी बेरुखी है या उसका स्वभाव है
प्यारी दस्तक है या कोई मनमुटाव है

जिंदगी पड़ाव में जिंदगी के दबाव में
मतलब बदल डाले मन के सुझाव ने

क्या हुआ जो पहाड़ टूट कर आ गिरा
वह भी छोड़ के आया है अपना सिरा

इस जद्दो जहद में जो भी मिल जायेगा
विशवास व बल हर कोई हिल जायेगा

पेड़ भी तन्हा हुए पतझड़ की आड़ में
हरियाली मंझर आये उसके सिंगार में

परिवर्तन ही जिन्दगी का स्वभाव है
इसको भूल जाना ही हर अभाव है

सहज स्वीकृति ही तो ख़ुशी और आनन्द है
जहाँ सहजता है जिंदगी वहीँ परमानन्द है ……

जहाँ सहजता है जिंदगी वहीँ परमानन्द है …….

Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

Tuesday, April 5, 2016
Topic(s) of this poem: motivational
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