A-166 तेरे आगोश में2-6-15 11.38 PM
तेरे आगोश में आते ही जो तूफ़ान आया
न तुमको समझा न खुद को होश आया
तेरी सांसों की गर्मियां बहकने लगीं जब
बड़ी मुद्दत बाद ख़ामोशी को होश आया
तेरी रोशनी में हम हमेशा दुआ करते रहे
तेरी फ़िज़ायों की सरगर्मियां भी बनी रहें
बना रहे हम पर सदैव तुम्हारा यह साया
तेरी हर अदा से समन्वय प्यार बन आया
तेरी मौजूदगी ने मुझे वो हर इनाम दिया
मिली है मुझे सुन्दर अप्सराओं की काया
आँखों को भी क्या खूब सकून मिलता है
जब भी करीब से निकलता उन्मुक्त साया
कहाँ मिलती हैं ज़नाब ख़ूबसूरत अदायें
इतना सुन्दर मौसम हो ऐसी हों फिजायें
हरी भरी वादियों के बीच वो सुन्दर उभार
मिलना भी हो जाता है उनसे कभी कभार
उनके देखने से आ जाता है दिल को चैन
दिन भी मचल उठता मुस्कुरा पड़ती है रैन
उनके रुख़्सार पर काला तिल भी नहीं है
फिर भी सकूं मिलता है दिल होता बेचैन
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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