A-172 सुन्दर नारी 21.3.16- 1.40 AM
बहुत प्यारी जन्मे सुन्दर नारी
कभी बहन बनत कभी मतारी
क़िस्म ज़िंदगी जैसी हो भारी
हटे न पीछे यह कभी न हारी
जैसा बोझ उतनी ज़िम्मेवारी
उठा लेती है यह सुन्दर नारी
बिखरे पलों की बना क्यारी
खुद हो जाती शोभित न्यारी
बेशक जले बन पड़े फफोले
राज अपने ये कभी न खोले
रहे सजग अपने नारीत्व को
मन इसका फिर भी न डोले
बचपन से जुगत बनती आयी
किसीकी बेटी किसकी जाई
कितनी सुन्दर किसकी बहना
भैया बिना नहीं है इसने रहना
घर की लक्ष्मी घर की रौनक
सब की प्यारी मन की दौलत
मम्मी पापा को जान से प्यारी
दादा दादी तो जाये बलिहारी
इसका इक नाम जिम्मेवारी
घर की महिमा दूजा दुलारी
माँ की बिटिया माँ बन जाये
पूरे घर में लगत हाँथ बटाये
सुन्दर सुशील कोमल है काया
सबने मिल फिर ब्याह रचाया
सबका मन जब भर भर आया
विदा होकर पिया घर बसाया
नहीं रूकती यह शक्ति है नारी
फिर जुगत शुरू हो गयी सारी
वही बचपन फिर वही दोबारी
फिर भी कहें किस्मत की मारी
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"
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बचपन से जुगत बनती आयी किसीकी बेटी किसकी जाई घर की लक्ष्मी घर की रौनक.... //.... शैशव से युवावस्था तथा उसके बाद भी परिवार व समाज में बेटी, नातिन, पौती, बहन, पत्नीं, माँ तथा अन्य रिश्तों के ज़रिये प्रगट होने वाला नारी का स्थान अद्वितीय है. आज की नारी हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का लोहा मनवा रही है. लेकिन समाज में उसके प्रति बहुत कुछ अवांछित हो रहा है जिसे रोकने या बदलने की जरुरत है.