A-240 मेरी तस्वीर झलकती है Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-240 मेरी तस्वीर झलकती है

A-240 मेरी तस्वीर झलकती है 19.2.17- 4.38 AM

अब दिखने लगा है सब आईने में
मेरे खुद का स्वरुप सही मायने में
मेरी बदसलूकी मशरूम होने लगी
देखा खुद को जो निर्वस्त्र आईने में

मेरा होना ही उनका प्रतिबिम्ब बना
मेरा ही प्यार बना माशूक आईने में
मेरा चुम्बन उनके सर चढ़ के बोला
आओ न समीप अब मेरे आईने में

हर्फ़ों का जादू उनकी आँखों में था
नैन नशीले होंठ रसीले बाँहों में था
ढूँढ़ते रहे खुशियाँ सच के मायने में
वो भी दिखी केवल अपने आईने में

उनका मुकद्दर मेरा जाम बन गयी
उनकी हुक़ूमत मेरा नाम बन गयी
उड़ेलते रहे ज़हर वो मेरे पैमाने में
हम आईने को देखते रहे आईने में

धुंदलापन सा दिखे अपनी गैरत में
मैं परेशान क्यों हूँ अब भी हैरत में
क्यों धो डाले रिश्ते किस मायने में
अब दिखने लगा मुझे सब आईने में

मेरी रहनुमाई ही बने उनके जेवर थे
मेरी बेबफ़ाई ही बने उनके तेवर थे
मेरा स्वभाव ही उनका स्वभाव बना
दिल का हर भाव उनका भाव बना

हँसी हंस के फव्वारे हँसी लाते थे
गुस्से के भाव तो गुस्सा दिखाते थे
रोना देखकर तो रोना ही आता था
उदासी का हक़ उदासी जताता था

तुम ही हो जैसा निर्माण करते हो
जैसा चाहो वैसा निर्वाण करते हो
अलग अलग भी देखा कई मायने में
मेरे ही प्रतिबिम्ब दिखे हर आईने में

Poet: Amrit Pal Singh Gogia ‘Pali'

A-240 मेरी तस्वीर झलकती है
Sunday, June 25, 2017
Topic(s) of this poem: love,motivational,relationship,self discovery
COMMENTS OF THE POEM
Akashdeep Singh Sidhu 07 July 2017

Beautiful lines

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success