A-278 हर बार Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-278 हर बार

A-278 हर बार 29.5.17- 9.31 AM

हर बार बदल लेते हो तस्वीर तबस्सुम
कभी खिलखिला मिलते कभी गुमसुम
कौन सी तस्वीर तुम्हारी कौन नहीं तुम
हमने खुद से पूछा कैसे पहचानोगे तुम

गेसुओं से पूछा रंग बदलने की फ़िजा
बोले मर्दों को देते इन्हीं रंगों से सजा
लहरा के बोले यह तो फ़ितरत हमारी
मरती है दुनिया इसी पर फिरती मारी

नयनों से पूछा कैसी अदा ये तुम्हारी
क्यों आड़ी तिरछी क्यों चढ़े है ख़ुमारी
टिकती नहीं क्यों जब मेरे नयन आएं
झुक जाती क्यों, क्यों मुझसे शरमायें

चिकने गालों का सच्चा राज क्या है
बता दे खिलने का वो अंदाज़ क्या है
खिलने पर सारा जहां फ़िदा हो जाये
मर जाये संभलने में वो अंदाज़ क्या है

होठों की लाली मुनस्सर चाँद सितारे
शोख़ अदाओं से मिले वो बात क्या है
नहीं सानी तेरी सुराही गर्दन का कोई
मदमस्त जवानी के वो अन्दाज़ क्या है

मदमस्त जवानी के वो अन्दाज़ क्या है
Poet: Amrit Pal Singh Gogia 'Pali'

A-278 हर बार
Wednesday, May 31, 2017
Topic(s) of this poem: love and friendship,relationships
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