Aaz Aayenge Balam Mora Gaon Re Poem by Upendra Singh 'suman'

Aaz Aayenge Balam Mora Gaon Re

आज़ आयेंगे बलम मोरा गाँव रे|


आज़ आयेंगे बलम मोरा गाँव रे|
कागा आँगन में बोले काँव-काँव रे|

आज़ मोरा मधुबन में कुहके कोयलिया|
छम-छम छमक उठी पाँव की पायलिया|
बलखाती इठलाती खुशी ठाँव-ठाँव रे|


धरती का रूप देख अम्बर इठलाये|
लहर-लहर नदिया का पानी लहराये|
लहरों पे मचल उठी माँझी की नाव रे|

शर्मीली कलियों ने घूँघट उठाया है|
सोख हसीं फूलों ने गुलशन सजाया है|
आज़ ठुमक-ठुमक नाचे मन के मधुर भाव रे|

आज़ मधुमास मधुर सज-धज के आया है|
मस्त बहारों ने क्या रंग जमाया है|
मोरा मन मृदंग बाजे, , , , , , , , , , , , , , , , , ...

आज़ मगन कितनी मैं कैसे मैं बताऊँ रे|
पिया की दीवानी मैं पिया-पिया गाऊं रे|
पड़े नहीं सखी मोरा धरती पे पाँव रे|

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Thursday, August 7, 2014
Topic(s) of this poem: love
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