आज़ आयेंगे बलम मोरा गाँव रे|
आज़ आयेंगे बलम मोरा गाँव रे|
कागा आँगन में बोले काँव-काँव रे|
आज़ मोरा मधुबन में कुहके कोयलिया|
छम-छम छमक उठी पाँव की पायलिया|
बलखाती इठलाती खुशी ठाँव-ठाँव रे|
धरती का रूप देख अम्बर इठलाये|
लहर-लहर नदिया का पानी लहराये|
लहरों पे मचल उठी माँझी की नाव रे|
शर्मीली कलियों ने घूँघट उठाया है|
सोख हसीं फूलों ने गुलशन सजाया है|
आज़ ठुमक-ठुमक नाचे मन के मधुर भाव रे|
आज़ मधुमास मधुर सज-धज के आया है|
मस्त बहारों ने क्या रंग जमाया है|
मोरा मन मृदंग बाजे, , , , , , , , , , , , , , , , , ...
आज़ मगन कितनी मैं कैसे मैं बताऊँ रे|
पिया की दीवानी मैं पिया-पिया गाऊं रे|
पड़े नहीं सखी मोरा धरती पे पाँव रे|
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'
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