अमर हो जाओ.. Amar Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अमर हो जाओ.. Amar

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अमर हो जाओ
शुक्रवार, ४ अक्टूबर २०१९

जानू में अपना धरम
पर ना जानु अपने करम
लालसा और जलन रहे अपनीचरमसीमा पर
पता नहीं कहाँ से निकल आते उसके पर।

हर कोई कहता
और दिल से मानता
मजहब नहीं सिखाता
बस प्रेमभाव ही जगाता।

जीवन का फलसफा
मन को रखो सफा
मौक़ा हाथ से चला गया जो एक दफा
तो हमेशा कहलाओगे बेवफा।

प्यार ना करीओ कोई
पर लगा रहता हरकोई
प्यार लगी कभी ना बुझे
हर कोई समजावे मुझे।

प्यार और महोब्बत
जरुरत होती हमें हरवक्त
इसके बिना जीवन अधूरा
जीवन का मकसद कभी ना होता पूरा।

सब में मुझे रब दिखता
सभीको में देता फूलों का वास्ता
खिल जाओ खुशबु के संग और अस्त हो जाओ
बिना किसी को तकलीफ में डाले अमर हो जाओ।

हसमुख मेहता

अमर हो जाओ.. Amar
Thursday, October 3, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 October 2019

सब में मुझे रब दिखता सभी को में देता फूलों का वास्ता खिल जाओ खुशबु के संग और अस्त हो जाओ बिना किसी को तकलीफ में डाले अमर हो जाओ। हसमुख मेहता .poemhunter/hasmukh-amathalal/

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